मोदी के बाद दीदी-चाय

December 15 2015


ग्रीन पीस जैसी संस्थाओं को भले ही बड़े बेआबरू कर देश निकाला का फरमान सुनाया गया हो पर अमरीकी दबाव की वजह से मोदी सरकार की यह सदइच्छा भी पूरी तरह से सिरे नहीं चढ़ पाई है। पर जाते-जाते भी ग्रीन-पीस जैसी संस्थाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था के पेट पर जबर्दस्त लात मारी है। अगर आपको याद हो तो यह वही ग्रीन पीस है जिसने भारत के चाय को लेकर खासा बखेड़ा खड़ा किया था और यह तुर्रा उछालने में कामयाब रही थी कि भारतीय चाय में कीटनाशकों की एक बड़ी नुकसानदेह मात्रा छुपी है। इसके बाद से ही लगातार हमारे बड़े चाय बागान एक के बाद एक बंद होते चले गए। चाय बागान के मजदूरों को उकसाने में भी कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिकाएं संदेह के घेरे में है, सनद रहे कि इनमें से ज्यादातर ’एनजीओ’ को विदेशी अनुदान प्राप्त होता है। इन एनजीओ ने एक वाजिब सा लगने वाला सवाल उठाया कि चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बागान मालिक न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रहे हैं, मजदूरों और बागान मालिकों के बीच खींचतान बढ़ती गई और एक बाद एक लगातार चाय बागान बंद होते गए। आज हालत यह है कि चाय बागान के मजदूर भुखमरी की कगार पर हैं, आत्महत्याओं का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में बंगाल की उत्साही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एंट्री होती है जिनका शायद शिद्दत से मानना रहा हो कि एक चाय वाला (मोदी) अगर देश का प्रधानमंत्री बन सकता है तो फिर क्यों नहीं उन्हें भी इस चाय के धंधे में कूद जाना चाहिए? सो, कोलकाता में चाय बागान के मालिकों से मिलने के बाद ममता को यह बुद्धत्व प्राप्त हुआ कि चाय बागानों का राष्ट्रीयकरण किया जाएगा यानी ममता दीदी भी अब चाय बेचने की तैयारी में हैं।

 
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