तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या कि तुमने चीखों को सचमुच सुना नहीं है क्या
मैं एक जमाने से हैरान हूं कि हाकिम ए शहर जो हो रहा है उसे देखता नहीं है क्या
डा. शहरयार की इस लफ्जेबयानी में जैसे पूरे भोपाल शहर का दर्द सिमट आया है, जब दिसंबर 3, 1984 की एक अलस्सुबह यूनियन कार्बाइड के भोपाल प्लांट से मिथाइल आइसोसानेट जहरीली गैस के रिसाव से 3,500 लोगों की जान चली गई और 2 लाख से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए। जरा देखिए दोषियों को देश की शीर्ष अदालत से सजा क्या मिली है महज दो वर्ष। क्योंकि तब शीर्ष अदालत ने इतने बेगुनाह की मौतों के जिम्मेदार लोगों पर धारा 304 (ए) (लापरवाही से हुई मौत) के तहत ही ट्राई करने का अंतिम फैसला किया था, इस धारा में दोषी साबित हो जाने पर अधिकतम सजा ही दो वर्ष है, अगर सुप्रीम कोर्ट अपना यह फैसला वापिस लेता है तो दोषियों को धारा 304(पार्ट-2) के तहत सजा का मार्ग प्रशस्त हो सकता है यानी यह सजा की अवधि बढ़ाकर 10 साल तक की सकती है।