क्या करे एनआईए?

September 18 2011


दिल्ली हाई कोर्ट बम ब्लास्ट का केस देख रही एनआइए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के अब तक के प्रदर्शन पर सरकार नाराज है। सरकार नाराज है कि 2611 के बाद जिन उद्देश्यों के लिए एनआइए का गठन हुआ था एजेंसी उसमें सफल नहीं हो पाई है। अब तक एक भी केस कायदे से निपटा नहीं है। पर एनआइए क्या करे, उसे लगता है कि सरकार ने उन्हें कोई कायदे की कानूनी सुरक्षा भी नहीं दी है। अब इसकी डयूटी में आतंकवाद की जांच (इंवेस्टिगेट) करनी है, उसे रोकना (प्रीवेंट)है, और दोषियों को सजा (प्रोसिक्यूट)दिलानी है। पर सवाल उठता है कि जब एनआइए के पास अपना कोई खुफिया (इंटेलीजेंस) सेटअप ही नहीं तो वह सूचना कहां से बटोरेगी? यही कारण है कि 2611 के बाद से लेकर इसने किसी भी केस को उसके मुकाम तक नहीं पहुंचाया है। एनआइए के पास न तो अपना एक्टिव इंटेलीजेंस है और न ही उसे अन्य सरकारी खुफिया एजेंसियों से ससमय सूचनाएं मिल पाती हैं। होना तो यह चाहिए था कि इसके अंदर देशभर के सबसे उम्दा आइपीएस अफसरों की बहाली हो, इन्हें अलग-अलग राज्यों से चुना जाना चाहिए था। पर हो क्या रहा है? इसमें वैसे अफसरों की कालापानी पोस्टिंग हो रही है जिनसे राज्य के सीएम नाराज हैं, इनमें से ज्यादातर अफसर ऐसे हैं जिनकी उनके सर्विस काल में कभी आतंक प्रभावित इलाकों में पोस्टिंग ही नहीं हुई है, साथ के अन्य अफसरों की न तो प्रोफेशनल ट्रेनिंग हुई है और न ही कानूनी। इनके पास इंटेलीजेंस गैदरिंग की कोई मशीन नहीं है, सुपर कॉप जैसी कोई टीम नहीं है, न ही रिबोरो या गिल जैसा इनके पास कोई सक्षम नेतृत्व है, तो अकेले एनआइए को इसके लिए क्यों दोषी ठहराया जाए?

 
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