केंद्र का अमरीका प्रेम

June 22 2010


इस पूरे मामले में मुआवजे की राशि को लेकर भी झोल है। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 490 मिलियन डॉलर का मुआवजा तय किया था, जो यूनियन कार्बाइड को भारत सरकार को देना था, यह 1989 की बात है तब जस्टिस आर.एस.पाठक (अब दिवंगत) सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस थे और हैरानी की बात देखिए बाद में वही पाठक साहब अमरीका की कृपादृष्टि से ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। आज पाठक साहब की पुत्र की फर्म आनंद पाठक एंड कंपनी देश की एक शीर्ष लॉ-फर्म में शुमार होती है। पर सीआर पीसी की धारा 357 (3) के मुताबिक अगर मुआवजा कम है तो इसकी पुनर्समीक्षा हो सकती है। पर लगता नहीं है मनमोहन सरकार इस बात को लेकर जरा भी फिक्रमंद है क्योंकि फिलवक्त केंद्र सरकार का सारा ध्यान अमरीका द्वारा पोषित न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल को किसी प्रकार से लाने पर टिका है।

 
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