नए अवतार में पीयूष

April 02 2018


रेल मंत्री पीयूश गोयल की उम्मीदों की रेल चल निकली हैं, इन दिनों वे भाजपा अध्यक्ष अमित षाह के बेहद भरोसेमंदों में षुमार होने लगे हैं। सो, यूपी के उप चुनावों के नतीजों से फक्क हुई भाजपा ने कुम्हलाए कमल को नया स्पंदन देने की जिम्मेदारी गोयल के कंधों पर रखी, और इस राज्यसभा चुनाव में यूपी में भगवा कमल खिलाने की खातिर गोयल पखवाड़े पहले से लखनऊ में जमे बैठे थे। विपक्ष को चारो खाने चित्त करने के लिए एक चाक चौबंद व्यूह रचना रची गई, सबसे पहले वरीयता के क्रम में भगवा उम्मीदवारों को सजाया गया, मसलन अरूण जेटली को सबसे ऊपर रखा गया। जरूरी 37 की जगह, दो अतिरिक्त यानी 39 सीनियर विधायकों का एक गुलदस्ता तैयार हुआ, इस गुलदस्ते को मांजने-संवारने की महती जिम्मेदारी मंत्री सतीष म्हाना को सौंपी गई, इसी तरह 39-39 विधायकों के समूह पर नज़र रखने की जिम्मेदारी एक अदद मंत्री को सौंपी गई। चुनाव से ऐन पहले विधायकों से वोट देने की ’मॉक ड्रिल’ कराई गई। फर्स्ट टर्म एनडीए विधायकों को बकायदा ट्रेनिंग दी गई कि वे अपना वोट कैसे कास्ट करें और इस महती जिम्मेदारी को स्वयं पीयूश गोयल ने उठाया। गोयल अब वोट मैनेजमेंट में भी सिद्दहस्त हो चुके हैं, चुनांचे अनिल अग्रवाल की जीत पक्की करने के लिए तलवार की धार पर चलने की तरह था, सेकिंड प्रिफ्रेंस के 14 वोटों की उन्हें जरूरत थी, भाजपा के अपने 12 वोट बचे थे, जरूरत थी सिर्फ 2 वोट की, जब चुनाव के नतीजे आए तो अग्रवाल को निर्दलीय व अन्य उच्च जाति के विधायकों के 4 वोट मिल गए और उन्होंने मैदान मार लिया और पीयूश गोयल ने भी खुद को एक नवअवरित रणनीतिकार के तौर पर साबित कर दिया।

 
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