Posted on 04 January 2021 by admin
दीदी के पाले से निकल कर ताजा-ताजा भाजपा में शामिल हुए तृणमूल कांग्रेस के नंबर दो माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी अपनी पार्टी बनाना चाहते थे। शुभेंदु लंबे समय तक दीदी के सबसे ज्यादा भरोसेमंदों में शुमार होते थे। वे नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलन की उपज माने जाते हैं और यह भी माना जाता है कि पश्चिम बंगाल के कम से कम 50 विधानसभा सीटों पर उनका असर है। जब बंगाल में पहली बार ममता की सरकार बनी तो शुभेंदु की उस सरकार में तूती बोलती थी। पर जब बाद के दिनों में तृणमूल की राजनीति में ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी का अभ्युदय हुआ तो धीरे-धीरे शुभेंदु का किला ढहने लगा। ममता के दूसरे टर्म में अभिषेक ने उन्हें एक तरह से सरकार के अहम फैसलों से दरकिनार कर दिया, तब शुभेंदु को बैचेनी होने लगी और उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता तलाशना शुरू कर दिया। उनकी नई पार्टी के गठन की रूपरेखा बिल्कुल तैयार हो चुकी थी, भाजपा नेता दिलीप घोष और कैलाश विजयवर्गीय पहले से उनके संपर्क में थे। सूत्र बताते हैं कि शुभेंदु अपनी नई पार्टी के गठन के लिए भाजपा की मदद चाहते थे, वहीं भाजपा को ऐसा लगा कि इनकी पार्टी बनने से ममता विरोधी वोटों का बंटवारा हो जाएगा जो भाजपा के हक में नहीं है, सो पार्टी नेता मुकुल राय के विरोध के बावजूद (चूंकि राय का शुभेंदु से 36 का आंकड़ा है) कैलाश विजयवर्गीय ने इन्हें भाजपा ज्वॉइन करा दी है।
Posted on 04 January 2021 by admin
अरूणाचल प्रदेश में 7 में से 6 जदयू विधायकों ने भाजपा ज्वॉइन कर ली है, इनमें से तीन विधायक वैसे भी हैं जिन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने की वजह से नीतीश ने पहले ही कारण बताओ नोटिस जारी कर रखा था। सबसे खास बात तो यह कि आने वाले कुछ दिनों में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी आहूत थी जिसमें इन विधायकों को भी शामिल रहना था। वैसे भी अरूणाचल में सरकार चला रही भाजपा को जदयू अपना समर्थन दे रही थी। कहते हैं नीतीश इस घटना से खासे कुपित हैं। अभी उन्हें इस बात का निर्णय लेना था कि 14 जनवरी से 31 जनवरी के बीच जो मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार होना है, नीतीश उसमें अपने कोटे के मंत्रियों को सरकार ज्वॉइन कराएंगे अथवा नहीं? वैसे भी भले ही नीतीश ने बिहार में मुख्यमंत्री पद की चाहे सातवीं बार शपथ ले ली हो पर इस बार वे दबाव में काम करते नज़र आ रहे हैं। मामला चाहे विधानसभा स्पीकर चुनने का रहा हो अथवा मंत्रिमंडल गठन का, नीतीश के ऊपर भाजपा हावी रही है। कहते हैं अब नीतीश को अपने पुराने मित्र लालू यादव के जेल से छूट कर आने का इंतजार है, इसके बाद ही वे कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं।
Posted on 04 January 2021 by admin
’दुलकी चाल से चला, हौंसलों का यह बुलबुला
मंसूबों के अश्वमेध पर, उम्मीदों का है फूल खिला’
पीएम मोदी हमेशा वक्त से आगे की सोचते हैं, शायद इसीलिए अदालती रोक की परवाह किए बगैर उन्होंने नई दिल्ली में नए संसद भवन का भूमि पूजन भी कर दिया और भगवा ललाट पर भविष्य की नई उम्मीदों का तिलक भी कर दिया है। जरा सोचिए तब क्या होगा जब देश में लोकसभा की सीटों को नई परिसीमन का आकार मिलेगा और आबादी के हिसाब से राज्यों को सीटों का प्रतिनिधित्व मिलेगा, तब बिहार की 40 लोकसभा सीटें नए परिसीमन में 70 का आंकड़ा छू सकती हैं और मध्य प्रदेश की मौजूदा 29 सीटें बढ़ कर 50 का आंकड़ा पार कर सकती हैं। वैसे भी मौजूदा दौर में आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों का असंतुलन बना हुआ है, आखिरी बार जब सातवें दशक में सीटों की संख्या तय की गई थी तब सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व देने के सिद्धांत के तहत सीटों का आंबटन हुआ था। पर इसके बाद बढ़ती आबादी की रफ्तार ने यह संतुलन बिगाड़ कर रख दिया, जैसे उत्तर और पूर्वी राज्यों की आबादी सबसे तेजी से बढ़ी, जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों में आबादी बढ़ने की दर स्थिर रही। यही वजह है कि तमिलनाडु की कुल आबादी सात करोड़ से भी कम है और यहां से लोकसभा के 39 सांसद हैं, वहीं मध्य प्रदेश की आबादी साढ़े सात करोड़ से ज्यादा है और यहां सिर्फ 29 सीटें हैं। यूपी में 80 सीटें हैं जबकि यह सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है, अनुमान लगाएं तो यूपी में 30 लाख की आबादी पर एक सांसद है, वहीं तमिलनाडु में 16-17 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट। अगर इस 16-17 लाख की आबादी को पैमाना माने तो फिर अकेले यूपी में 150 सीटें बनानी होंगी। राजस्थान जैसे प्रदेश को भी कम से कम 50 सीटें देनी होंगी। इसका एक तरीका यह भी हो सकता है कि ज्यादा आबादी वाले राज्यों का बंटवारा हो, जैसा बीजेपी यूपी के संदर्भ में सोच रही है। नया संसद भवन जो अक्टूबर 2022 तक बन कर तैयार हो सकता है, उसमें लोकसभा के कुल 880 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी, जिसे बढ़ा कर 1224 तक किया जा सकता है, वर्तमान संसद भवन में यह क्षमता मात्र 550 सदस्यों के बैठने की है। मौजूदा राज्यसभा में 250 सांसदों के बैठने की व्यवस्था है, नए संसद भवन में राज्यसभा के 332 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है। हालांकि संसद में सीटों की संख्या बढ़ाने पर 2026 तक रोक लगी हुई है, पर बहुमत की सरकार जब चाहे इस फैसले को बदल सकती है, आबादी और लोकसभा सीटों की संख्या को आधार बना कर मोदी सरकार नया परिसीमन कानून बना सकती है। वरिष्ठ पत्रकार और संपादक अजित द्विवेदी कहते हैं कि कायदे से 2021 की जनगणना को आधार बना कर यह किया जा सकता था, पर कोरोना की वजह से 21 की जनसंख्या ही शुरू नहीं हो पाई है, पर सरकार चाहे तो एक साल की देरी से भी यह मुकम्मल कर सकती है। यानी 2024 के चुनाव नए परिसीमन वाले सीटों के आधार पर हो सकते हैं, तब दक्षिण की सीटें चाहे उतनी ही रह जाएं, पर उत्तर और पूरब की सीटों में खासा इजाफा हो सकता है और भाजपा के लिए सबसे मुफीद भी शायद यही है।
Posted on 04 January 2021 by admin
जिस रफ्तार से दीदी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है और पार्टी के कई बड़े नेता टीएमसी को अलविदा कह बीजेपी ज्वॉइन कर रहे हैं, उससे पश्चिम बंगाल के भाजपा नेताओं की धुकधुकी बढ़ा दी है, क्या पता कब किसका टिकट कट जाए। कभी ममता के बेहद करीबियों में शुमार होने वाले टीएमसी सरकार के मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा का दामन थाम लिया तो उनके समर्थक विधायकों का भी भगवा पार्टी में आने का सिलसिला शुरू हो गया। जैसे आसनसोल के एक बाहुबली नेता और टीएमसी विधायक जितेंद्र तिवारी भी भाजपा के पाले में आ गए। यह बात आसनसोल से भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो को बेहद नागवार गुजरी है और उन्होंने आनन-फानन में अपनी भावनाओं का इजहार अपने फेसबुक वॉल पर किया है, बाबुल ने जितेंद्र तिवारी की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि ’जिन लोगों ने मेरे कार्यकर्ताओं की पिटाई की, उन्हें मारा, पीटा उनका मैं बीजेपी में आने का विरोध करता हूं।’ सुना यह भी जा रहा है कि बाबुल सुप्रियो के समर्थक जितेंद्र तिवारी के भाजपा में आने का ऐलान करते बैनर-पोस्टर फाड़ रहे हैं। सच पूछिए तो इस मामले में बाबुल अकेले नहीं हैं, पश्चिम बंगाल के भाजपा नेताओं की एक बड़ी तादाद है जो मानते हैं कि टीएमसी और अन्य पार्टियों से ऐन चुनाव के पहले भाजपा में आने वाले नेता उनकी और उनके
समर्थकों की टिकट पाने की संभावनाओं को धूमिल कर रहे हैं।
Posted on 04 January 2021 by admin
क्या केंद्र सरकार किसान आंदोलन की गंभीरता और तीव्रता को मद्देनज़र रखते उसके अनुरूप ही आचरण कर रही है? मामला अदालत में है और सुप्रीम कोर्ट कमेटी बनाने की बात कर रहा है, सरकार को भी अब कोर्ट से ही अपेक्षा है। यह पूछे जाने पर कि किसान रास्ते क्यों बंद कर रहे हैं, किसानों का कहना है कि वे तो प्रदर्शन के लिए रामलीला मैदान और जंतर मंतर आना चाहते थे, पर पुलिस ने उन्हें बार्डर पर ही रोक दिया। सरकार से 5 बार की वार्ता क्यों भंग हुई? किसानों का कहना साफ है कि इस कृषि कानून का मसौदा बनने से पहले उन्हें क्यों नहीं दिखाया गया उनसे राय-मशविरा क्यों नहीं ली गई और किस किसान संगठन ने उनसे ऐसा कानून बनाने की मांग की थी। सूत्र बताते हैं कि सरकार भी अब बीच का रास्ता निकालने को तैयार हो गई है, कृषि बिल में संशोधन कर इसे लागू करने का अधिकार राज्यों के जिम्मे सौंप दिया जाएगा, अब यह मर्जी होगी राज्यों की कि इसे वे लागू करते हैं या फिर पंजाब-हरियाणा सरकारों की तरह इसे ठंडे बस्ते में डालना चाहते हैं। यानी इससे सरकार की नाक भी रह जाएगी और पंजाब-हरियाणा के किसानों का गुस्सा भी ठंडा हो जाएगा। अब इस मुद्दे पर केजरीवाल जैसे नेता बुरे फंसे हैं, पहले तो उनकी आप सरकार ने इस नए कृषि बिल को जल्दबाजी में ‘नोटिफाई’ कर दिया, अब दिखाने के लिए और अपनी साख बचाने के लिए केजरीवाल बिल को फाड़ रहे हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी को आने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेना है।
Posted on 04 January 2021 by admin
राहुल गांधी की राजनीति का अंदाज भी निहायत निराला है, पिछले कुछ हफ्तों से जब पार्टी में इतना कुछ तूफानी चल रहा है तो वे अंतरराष्ट्रीय मसलों पर चिंतन-मनन कर रहे हैं। हालांकि किसान आंदोलन को लेकर लगभग रोज ही उनका कोई न कोई ट्वीट या बयान आ जाता है। पर उनकी असल दिलचस्पी कहीं और लगती है। पखवाड़े पूर्व नई दिल्ली के जिमखाना क्लब में राहुल के लिए काम करने वाले कौशल किशोर विद्यार्थी ने एक चाय पार्टी रखी थी और उस चाय पार्टी में बड़ी तादाद में विदेशी राजनियकों (डिप्लोमेट्स) को आमंत्रित किया गया था। कहना न होगा कि राहुल से मिलने और बात करने के लिए बड़ी संख्या में डिप्लोमेट्स आए और सबसे हैरानी की बात यह है कि राहुल स्वयं उस चाय पार्टी में दो घंटे से ज्यादा वक्त तक मौजूद रहे। आमंत्रित डिप्लोमेट्स को इस बात का कहीं गहरे इल्म हुआ कि राहुल अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों पर अपनी पैनी नज़र रखते हैं और भारत की विदेश नीति को भी लेकर उनका नज़रिया बेहद साफ-सुथरा है, पर उन्हें चिंता बस इसी बात को लेकर थी कि जब खुद राहल के देश में इतना कुछ चल रहा है तो क्या उन्हें दो घंटों की चाय पीनी चाहिए थी?
Posted on 04 January 2021 by admin
’तुम अगर आइना हो तो सब सच दिखाते क्यों नहीं हो
कोई हाथ लगाए तो टूट कर बिखर जाते क्यों नहीं हो’
सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस में असंतोष का बुलबुला इस कदर फूट रहा है कि इसे देख गांधी परिवार भी हैरान-परेशान है। बैचेनी इस कदर है कि परिवार के चिराग राहुल गांधी के नेतृत्व को भी चुनौतियां मिलने लगी हैं? इस शनिवार को आहूत हुई कांग्रेस की बैठक की रूप-रेखा प्रियंका गांधी ने तैयार की थी, प्रियंका की इस मुहिम को परवान दी कमलनाथ ने, उन्होंने पार्टी के एक-एक असंतुष्ट नेता से खुद बात की और कहते हैं इस बात की जानकारी भी उन्होंने प्रियंका से साझा की। इन नेताओं को बताया गया कि बैठक से पहले स्वयं प्रियंका गांधी उनसे वन-टू-वन बात करेंगी यानी यह एक तरह से असंतुष्ट नेताओं की नाराज़गी दूर करने का ही पूरा उपक्रम था। सूत्र बताते हैं कि प्रियंका ने सचमुच बैठक षुरू होने से पहले अषोक गहलोत के साथ मिल कर कई असंतुष्ट नेताओं से सीधी बात की। गांधी परिवार का यह पूरा उपक्रम इस बात के लिए भी था कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में बात चुनाव तक पहुंचे ही नहीं, कहीं ओर से राहुल को चुनौती मिले नहीं और वे निर्विरोध पार्टी अध्यक्ष चुन लिए जाएं। वहीं दूसरी ओर राहुल हैं जो लगातार पार्टी को ये संकेत भेज रहे हैं कि वे अध्यक्ष बनना ही नहीं चाहते सो, एक बड़ा वर्ग है जो कह रहा है कि आखिर कब तक ऐसा चलेगा? बहुत हुआ, कम से कम अब तो चुनाव हों। दस जनपथ के वफादारों को अपने ही कुछ नेताओं पर षक है कि वे भाजपा की हाथों में खेल रहे हैं, और कांग्रेस के अंदर क्या चल रहा है इसकी पल-पल की जानकारी भाजपा तक पहुंचा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो शक के इसी दायरे में गुलाम नबी आजाद जैसे नेता भी आते हैं। इससे भाजपा का सूचना तंत्र मजबूत होता है और कांग्रेस गांधी परिवार पर उनके हमले की धार और भी पैनी होती है।