Posted on 06 June 2020 by admin
लॉकडाउन की शुरूआत से ही सोनिया और राहुल गांधी मोदी सरकार को समय-समय पर सलाहें देते रहे हैं, जैसे राहुल के आह्वान के बाद श्रमिकों के खाते में सीधे एक हजार रूपए डाले गए। राहुल ने पीएम से आग्रह किया था कि पीएम अपने संबोधन में श्रमिकों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचाने की घोषणा करें, उसके बाद श्रमिकों के लिए बसें और श्रमिक रेल की व्यवस्था की गई। इसके बाद राहुल ने हर श्रमिक के खाते में सीधे 7 हजार 500 रूपए डालने की बात कही।
प्रधानमंत्री इस पर अभी विचार ही कर रहे थे कि संघ और कुछ भाजपा नेताओं के दबाव सामने आ गया कि अगर बार-बार कांग्रेस की डिमांड पर कान धरा जाएगा तो कांग्रेस पब्लिक में इसका श्रेय लूटने लगेगी, सो, फिलवक्त आरजी के इस डिमांड को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
Posted on 06 June 2020 by admin
मध्य प्रदेश के भगवा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसी एक जून को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करना चाहते थे। काफी माथा-पच्ची करने के बाद उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए मंत्रियों की एक लिस्ट फाइनल की थी और उसे स्वीकृति के लिए दिल्ली भेज दिया था। पर भाजपा शीर्ष की ओर से अब तक इस लिस्ट को हरी झंडी नहीं मिल पाई है। वैसे भी इस दफे मंत्रियों के नाम फाइनल करना शिवराज के लिए आसान न था, क्योंकि कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए कई सिंधिया वफादार मंत्री बनने की कतार में हैं। इसके लिए शिवराज को अपने कई वफादारों के नाम काटने पड़े। जैसे शिवराज ने अपने विश्वासपात्र और पूर्व नेता प्रतिपक्ष सागर गोपाल भार्गव को स्पीकर पद ऑफर किया जिसके लिए भार्गव ने सीधे मना कर दिया है। लॉकडाउन के इस दौर में शिवराज को पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार के मंत्रियों से घर खाली कराने में भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। क्योंकि कमलनाथ ने सरकार में आते ही मंत्रियों के बंगलों की साज-सज्जा पर 38 करोड़ से ज्यादा रूपए फूंक दिए थे, अब उनके वे वफादार सरकारी घर छोड़ना नहीं चाहते। लेकिन कमलनाथ स्वयं 6 श्यामला हिल स्थित अपना मुख्यमंत्री का बंगला खाली
कर रहे हैं, उन्हें भी अपने पुराने घर में शिफ्ट होना है।
Posted on 06 June 2020 by admin
रेल मंत्रालय किस राज्य को कितनी श्रमिक रेल देगा इस पर अभी विवाद थमा भी नहीं था कि बंगाल और ओडिशा में अम्फान तूफान कहर बरपा गया। इसी बीच रेलवे ने मुंबई से कोलकाता के लिए श्रमिक ट्रेन चलाने की घोषणा कर डाली। अम्फान के बाद कोलकाता समेत बंगाल के कई हिस्सों का बुरा हाल था। बिजली के खंबे उखड़ गए थे, शहरों में पानी भरा था, बिजली पानी की समस्या अलग से थी। ममता को तब इस बात की चिंता सताने लगी कि ऐसे वक्त अगर कोलकाता में श्रमिक एक्सप्रेस आकर रुकती है तो इतने सारे श्रमिकों की व्यवस्था कैसे की जाएगी, उन्हें राज्य के अलग-अलग हिस्सों में कैसे भेजा जाएगा, ममता को इसमें केंद्र की कुछ चाल लग रही थी, सो उन्होंने फौरन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फोन लगाया और उनसे इस बारे में मदद मांगी और कहा कि ऐसे वक्त में जो मजदूर कोरोना पॉजिटिव निकल जाएंगे उन्हें वह कहां रखेंगी, बाकी मजदूरों को आइसोलेशन में रखने में भी परेशानी है। उद्धव ने ममता को दिलासा देते हुए कहा-’दीदी आप चिंता न करो हमारे यहां से जितने बंगाली श्रमिक बंगाल जाना चाहते हैं उनसे हम बात कर उन्हें यहीं रोकने की कोशिश करेंगे, उनके रोजगार की
भी व्यवस्था यहीं कर देंगे जिससे वे यहीं रह जाएं।’ उद्धव से आश्वासन प्राप्त होने के बाद ममता ने चैन की सांस ली।
Posted on 06 June 2020 by admin
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का राज-काज कतई नहीं सुहा रहा। सो, यदा-कदा वे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और संघ के कान उद्धव के खिलाफ भरते ही रहते हैं। जिस तरह महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के पेंचोखम को वहां के माननीय ने उलझा दिया था कि फड़नवीस को लगा कि अगर उद्धव विधान परिषद में चुन कर आ नहीं पाएं तो उन्हें अपनी गद्दी छोड़नी ही पड़ सकती है। जब उद्धव को हर तरफ हाथ पैर मार कर
कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने सीधे पीएम को फोन लगा कर बतिया लिया और पीएम के चाहने पर आनन-फानन में वहां चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई और वे चुन कर विधान परिषद में पहुंच भी गए। सूत्रों की मानें तो एक बार मुंह की खाने के बाद फड़नवीस ने भगवा शीर्ष को एक नायाब आइडिया दिया कि ’123 साल पुराने एपेडमिक डिज़ीज एक्ट 1897’ को कुछ रंग-रोगन के बाद महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में लागू किया जा सकता है जहां कोरोना
के मामले तेजी से पैर पसार रहे हैं। सनद रहे कि 1897 में मुंबई में ’ब्यूबोनिक प्लेग’ फैलने के बाद इसकी रोकथाम के लिए यह एक्ट बनाया गया था। इससे फड़नवीस का आशय था कि केंद्र सरकार इस एक्ट का सहारा लेकर राज्यों को शक्तिविहीन कर वहां राज-काज चलाने का जिम्मा खुद संभाल ले। उसके बाद जब कानूनविदों से इस बारे में राय ली गई तो ज्ञात हुआ कि इस एक्ट के तहत केंद्र सरकार राज्यों के संपूर्ण अधिकारों का अधिग्रहण नहीं कर सकती, बल्कि वह
सिर्फ इस बीमारी की रोकथाम हेतु जरूरी कदम उठा सकती है, यानी केंद्र का दखल सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी नीतिगत फैसलों में ही हो सकता है। किसी आसन्न संकट की आहटों को भांपते दिल्ली सरकार ने फौरन अपने यहां ’दिल्ली एपेडमिक 2020’ और महाराष्ट्र सरकार ने ’कोविड-19 रेग्यूलेशन 2020’ लागू कर दिया। वैसे भी इस बात की संभावना अभी शेष है कि अगर कोई राज्य सरकार ’एपेडमिक एक्ट’ को ठीक से बहाल नहीं करती है तो उस सरकार को बर्खास्त करने
का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। पर ये कानूनी पेंचोखम किंचित उलझे हुए हैं।