Archive | September, 2017

भाजपा देख तेरा मुंडा बिगड़ा जाए

Posted on 25 September 2017 by admin

झारखंड में जहां एक ओर वहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी सरकार के 1000 दिन पूरा होने का जश्न मनाने में जुटे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा पार्टी द्वारा अपनी उपेक्षाओं के गम से उबर नहीं पा रहे हैं। अपनी निरंतर उपेक्षा से आहत मुंडा ने पिछले दिनों रांची में अपने समर्थक विधायकों को रात के भोजन पर आमंत्रित किया, सूत्र बताते हैं कि इस डिनर में भाजपा के आठ से ज्यादा विधायक शामिल हुए। सूत्रों की मानें तो इस डिनर में मुंडा ने व्यथित भाव से अपने समर्थक विधायकों से कहा कि ’आज प्रतिकूल हालात हैं, उनके धैर्य की परीक्षा ली जा रही है, यहां तक कि उनका राजनैतिक अस्तित्व भी संकट में पड़ता जा रहा है, ऐसे में उनके पास विकल्प भी कम होते जा रहे हैं। कहते हैं मुंडा ने अपने विधायकों को पूछा कि अगर वे कोई बड़ा फैसला लेते हैं तो यहां मौजूद कितने लोग उनका साथ देंगे। सभी 8 विधायकों ने अपने हाथ खड़े कर दिए, भावुक हो आए मुंडा ने उन विधायकों से कहा कि वे जल्द बताएंगे कि उनका अगला बड़ा कदम क्या होगा। डिनर समाप्त हुआ, पर इसकी आग जलती रही। खबर रघुवर दास को भी लग गई, कहते हैं उन्होंने फौरन अमित शाह को फोन कर उन्हें पूरे हालात की जानकारी दी। जो मुंडा पिछले तीन साल से मोदी व शाह से मिलने को तरस गए थे, उन्हें दिल्ली तलब किया गया। दोनों धुरंधरों ने यानी पहले शाह और फिर मोदी ने मुंडा की दुख तकलीफें सुनी, उन्हें आश्वासन मिला कि उन्हें पहले राज्यसभा में लिया जाएगा, फिर संगठन में कोई महत्वपूर्ण पद दिया जाएगा। कम से कम फिलवक्त तो अर्जुन मुंडा पार्टी तोड़ने की तो नहीं सोच रहे।

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धरा पर वसुंधरा

Posted on 25 September 2017 by admin

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा में अपने आगे की राजनीति को लेकर किंचित ऊहापोह में है। वह दिल्ली के निज़ाम की भंगिमाओं को पढ़ने व समझने की लगातार मशक्कत कर रही हैं। सूत्र बताते हैं कि इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल के फेरबदल से ठीक एक रोज पहले वह प्रधानमंत्री से मिली थीं, और कहते हैं कई नामों को लेकर मोदी ने उनसे राय विचार भी किया था। इनमें से एक नाम राज्यवर्द्धन सिंह राठौर का भी था। राजवर्द्धन को लेकर राजस्थान की महारानी की अपनी कुछ सोच थीं, कुछ आशंकाएं थीं और उन्हें लगता था कि राठौर अवसरवादी राजनीति की उपज हैं, चुनांचे वसुंधरा ने राठौर को लेकर अपनी तमाम आपत्तियां मोदी दरबार में दर्ज करा दी थीं। वह वापिस जयपुर लौट गईं। जब अगले रोज मंत्रिमंडल फेरबदल हुआ तो मोदी सरकार में राठौर को दंड के बजाए, पारितोषिक दिया गया। हैरान परेशान वसुंधरा बस यही सोच रही थीं कि काश उन्होंने अपने मन की बात मन में ही रखी होती।

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रूढ़ी का दर्द

Posted on 25 September 2017 by admin

निर्मला सीतारमण को उनकी चुप्पी और वफादारी का ईनाम मिला है। दरअसल केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस हालिया फेरबदल से पहले जिन मंत्रियों को इस्तीफा देने को कहा गया था उनमें से एक नाम निर्मला का भी था। इसके बाद शाह की कोर टीम ने इस बात का जायजा लिया कि मंत्रिपद से हटाए जाने के बाद किस नेता की क्या प्रतिक्रिया रही। सूत्र बताते हैं कि सबसे असहज प्रतिक्रियाएं राजीव प्रताप रूढ़ी और फग्गन सिंह कुलस्ते की थीं। टीम शाह ने पाया कि रूढ़ी न केवल बेहद आक्रोशित थे, बल्कि उन्होंने कई अनर्गल प्रलाप भी किए। मसलन रूढ़ी का यह कहना था कि अगर परफॉरमेंस को आधार बनाकर मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी की गई है तो उन्हें अपनी बात कहने का मौका क्यों नहीं मिला? सूत्रों की मानें तो वे पिछले आठ महीनों से लगातार पीएम से अलग से मिलने का समय मांग रहे थे, पर उन्हें पीएमओ की ओर से यह समय ही नहीं दिया गया। यहां तक कि मंत्रालय के काम-काज की भी जब समीक्षा की बारी आती थी तो पीएमओ सिर्फ मंत्रालय के सचिव को तलब कर उनका प्रेजेंटेशन ले लेता था, ऐसे में मंत्री की जवाबदेही कब तय हुई और कब उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिला? यह बात चाहे सोलहो आने सही हो पर रूढ़ी जैसे राजनेताओं को यह भूलना नहीं चाहिए कि सत्ता की शीर्ष के कान हमेशा छोटे होते हैं और नाक लंबी!

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यूं टली निर्मला पर बला

Posted on 25 September 2017 by admin

अब बात करते हैं चुप सधे कदमों से सियासी फासले तय करने में सिद्दहस्त निर्मला सीतारमण की। सूत्र बताते हैं कि जैसे ही निर्मला से इस्तीफा मांगा गया, बगैर वक्त गंवाए वह शीर्ष नेतृत्व के पास पहुंची दोनों हाथ जोड़ उनका आभार व्यक्त किया और विनम्र शब्दों में कहा-’अपने साथ काम करने का मौका देकर आपने वाकई मुझे अनुग्रहित कर दिया है, मेरे लिए आपके मंत्रिमंडल में काम करना सबसे गौरव के क्षण रहें, मैं जीवन भर आपका यह अहसान नहीं भूलूंगीं।’ सूत्र बताते हैं कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से भी मिलकर कमोबेश उन्होंने यही बातें दुहराईं। उन्होंने शाह से यहां तक कह डाला कि अगर पार्टी उन्हें संगठन में लेना चाहती है तो इसके लिए उन्हें किसी पद की भी आवश्यकता नहीं, वह निःस्वार्थ भाव से पार्टी संगठन में काम करने को इच्छुक हैं। और अगर फिलवक्त पार्टी में भी उनके लायक कोई काम नहीं है तो वह अपने गांव जाकर अपने पति के साथ सुकून के दो पल गुजारना चाहती हैं। मौजूदा पार्टी नेतृत्व को सचमुच ऐसे ही विनम्र स्वयंसेवकों की जरूरत हैं, जिनका समर्पण भाव सत्ता के दर्प के समक्ष कभी सिर न उठा सके।

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और अंत में

Posted on 25 September 2017 by admin

इस दफे जबसे राहुल गांधी अमेरिका गए हैं, वे नए रंग-रौगन में सराबोर हैं, उनका खोया आत्मविश्वास भी लौट आया है और उनके अंदर एक नई अंतदृष्टि भी विकसित हो गई हैं। आने वाले दिनों में सत्तारूढ़ दल को इस बात का अंदाजा हो जाएगा। इसकी पहली मिसाल राज्यसभा में स्थायी समितियों के अध्यक्ष की नियुक्तियों में दिख सकता है। जैसे न्याय व कानून पैनल की अध्यक्षता भाजपा कांग्रेस के बजाए अपने नए सहयोगी अन्नाद्रमुक को देना चाहती है। संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने इस बाबत राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद से बात की पर यह बातचीत बेनतीजा रही। अनंत कुमार इस मसले पर सोनिया व राहुल से भी बात करना चाहते हैं, पर वहां से इस बाबत कोई सकारात्मक संदेश प्राप्त नहीं हुए हैं। राहुल अब कांग्रेस को एक जुझारू चेहरा देना चाहते हैं, पर इसके लिए उन्हें पहले राजनीति को पूर्णकालिक तौर पर अपनाना होगा। (एनटीआई-gossipguru.in)

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चिदंबरम के ’लैटर बम’ के निशाने पर सोनिया

Posted on 25 September 2017 by admin

ऐन वक्त जबकि पी.चिदंबरम के पुत्र कार्त्ति चिदंबरम के ऊपर कानून का शिकंजा निरंतर कसता जा रहा है, वैसे भी मोदी सरकार के निशाने पर हैं अपने बड़बोलों के लिए मशहूर चिदंबरम। सत्ता में रहते हुए चिदंबरम ने हर मुद्दे पर भाजपा पर सदैव तीखा हमला बोला था। सो, जब इस बार चिदबंरम चंहुओर से घिर गए और उनके पुत्र के जेल जाने के आसार बढ़ने लगे तो उन्होंने सोनिया व राहुल से मिलने का समय मांगा। चिदंबरम इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित थे कि उनके पुत्र के बचाव में कांग्रेस पार्टी या उसका कोई भी नेता सामने नहीं आ रहा है। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद पीसी ने सोनिया गांधी से फोन पर बात करनी चाही, पर सोनिया लाइन पर नहीं आईं। राहुल गांधी के अमेरिका रवाना होने से तीन दिन पहले से पीसी उनसे मिलने का समय मांग रहे थे, पर उनके अनुग्रह और फरियाद को जब गांधी परिवार ने अनसुना कर दिया तो आपे से बाहर हो गए चिदंबरम ने (सूत्रों के मुताबिक) कांग्रेस अध्यक्षा को एक तीखा पत्र लिखा, जिसका मजमून था कि ’अगर उनका बेटा जेल चला गया तो यह किसी के लिए ठीक नहीं होगा, न उनके लिए, न पार्टी के लिए और न गांधी परिवार के लिए।’ चिदंबरम का इस पत्र में कहना था कि मंत्री रहते हुए उन्होंने जो कुछ किया, उसमें उन्होंने गांधी परिवार की हर आज्ञा को शिरोधार्य किया है, और उन्होंने सरकार, पार्टी व गांधी परिवार के लिए ही सब कुछ किया है। वे राजनीति छोड़ सकते हैं पर अपने पुत्र का त्याग नहीं कर सकते।’ जाहिर है चिदंबरम के पत्र की भाषा में विद्रोह की गूंज साफ सुनाई दे रही थी, इससे पहले कि उनका विद्रोह कोई आकार ले पाता उन्हें 10 जनपथ से मिलने का बुलावा आ गया। उन्हें समझाया गया कि वे पार्टी के इतने वरिष्ठ नेता है, सो उन्हें ऐसी भाषा शोभा नहीं देती। इसके बाद दोनों ओर से भावानात्मक विचारों के आदान-प्रदान हुए और अगले ही रोज कांग्रेस पार्टी चिदंबरम और कार्त्ति चिदंबरम के बचाव में सामने आ गई, बकायदा प्रेस-कांफ्रेंस कर कांग्रेस को पीसी और उनके पुत्र का बचाव करना पड़ा।

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उद्धव का राज बेपर्दा हुआ

Posted on 25 September 2017 by admin

मोदी व शाह द्वय द्वारा सियासत के हाशिए पर धकेल दिए गए उद्धव ठाकरे को अपने बागी भाई राज ठाकरे की याद आने लगी है। वैसे राज के अच्छे दिन भी रूठकर उनसे वापिस चले गए हैं और वे महाराष्ट्र की राजनीति में बदलते वक्त के साथ और भी गैर प्रासंगिक होते चले जा रहे हैं। त्रासद है कि राज के पुत्र एक असाध्य बीमारी से ग्रस्त बताए जाते हैं, सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों राज के पुत्र को देखने के लिए उद्धव अस्पताल पहुंचे। फिर दोनों भाईयों ने आपसी गिले-शिकवे भुलाकर देर तक बातचीत की। उद्धव ने अपने चचेरे भाई से आग्रह किया कि अब बहुत हुआ वे फिर से शिवसेना का हिस्सा बनें, तो पार्टी में उन्हें नंबर दो की जगह मिल जाएगी। कमोबेश राज इस बात के लिए तैयार दिखे, फिर उद्धव ने अपनी पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं को राज से निर्णायक बातचीत के लिए उनके पास भेजा, पर उद्धव की नुमाइंदगी कर रहे इन दोनों नेताओं ने राज के समक्ष कुछ ऐसी शर्तें रखीं जिसे सुनकर राज अपना आपा खो बैठे। इनमें से पहली शर्त्त थी कि शिवसेना में वापसी के अगले 3 वर्ष तक राज को पार्टी या सरकार में कोई पद नहीं मिलेगा। और न ही वे अपने लोगों के लिए संगठन में पैरवी कर सकते हैं और न ही उन्हें आगामी किसी चुनाव में तीन वर्ष तक टिकट दिलवा सकते हैं, राज ने हुंकार भरी और उन दोनों सेना नेताओं को घुड़कते हुए कहा कि यानी आप मेरा इस्तेमाल सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए करना चाहते हो, पर बदले में कुछ देना नहीं चाहते।’ उद्धव तक राज का संदेशा चला गया है, अगर उद्धव को बात आगे बढ़ानी है तो उन्हें दो कदम आगे बढ़ना ही होगा।

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उड़ रहे हैं पायलट

Posted on 18 September 2017 by admin

राहुल के साथ अमेरिका जाने वाली कोर टीम में मिलिंद देवड़ा, शशि थरूर के साथ राजस्थान के युवा नेता सचिन पायलट का भी नाम शामिल था। पर ऐन वक्त सचिन ने अपनी व्यस्तताओं का हवाला देते हुए अमेरिका जाने से मना कर दिया। सचिन से इस बाबत जब स्वयं राहुल ने बात की तो सचिन ने बताया कि भाजपा सांसद सांवरलाल जाट की निधन से रिक्त हुए अजमेर सीट पर लोकसभा के उप चुनाव होने हैं, शेखावटी व सीकर में किसानों का आंदोलन चल रहा है, उसकी सुध लेनी है। सूत्र बताते हैं कि सचिन ने राहुल को बताया कि उनके अमेरिका में जितने भी कनेक्शन हैं, वह उन्होंने कोर टीम से शेयर कर दिए हैं, ऐसे में उनका अमेरिका जाना या न जाना बहुत मायने नहीं रखता है। सूत्र बताते हैं कि इस पर राहुल ने चुटकी लेते हुए सचिन से कहा-’इसमें कोई शक नहीं कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हो, पर यह न भूलो कि राजस्थान का रास्ता भी दिल्ली से होकर जाता है।’

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अंदर की बात

Posted on 18 September 2017 by admin

खबर गर्म है कि बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बेतरह नाराज़ है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इस दफे जब बिहार में नीतीश व भाजपा गठबंधन की सरकार फिर से बन रही थी तो भाजपाध्यक्ष अमित षाह इस बात के कतई पक्ष में नहीं थे कि सुशील मोदी को फिर से सरकार में लिया जाए। कहते हैं अपनी विकेट गिरती देख सुशील मोदी तुरंत संघ की शरण में चले गए। सूत्रों की मानें तो संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच-बचाव के बाद सुशील मोदी को फिर से बिहार सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाया गया। कहते हैं इस पूरे वाकया से अमित शाह इस कदर नाराज़ हुए कि उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश कर डाली और कहा कि वे केंद्र सरकार में आकर काम करने को तैयार हैं, कहना न होगा ऐसे में शाह के लिए गृह मंत्रालय उनकी पहली पसंद थी, वे गुजरात सरकार में पहले भी यह महकमा संभाल चुके थे। कहते हैं जब यह खबर राजनाथ सिंह को लगी तो वे एकदम से उचट गए, सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि राजनाथ को रक्षा मंत्रालय संभालने का ऑफर दिया गया। राजनाथ तुरंत जाकर भागवत से मिले और अपने विभाग बदले जाने पर ऐतराज जताते हुए कहा कि इससे लोगों में यह संकेत जाएगा कि वे एक असफल गृह मंत्री साबित हुए हैं, अगर ऐसा है तो फिर उन्हें संगठन में ले लिया जाए, बतौर अध्यक्ष वे पार्टी की सेवा करने को तैयार हैं। मोहन भागवत के हस्तक्षेप के बाद ही यह मामला निपट पाया, सुना तो यह भी जा रहा है कि मंत्रिमंडल फेरबदल से पूर्व राजनाथ सिंह के घर पर जो मंत्रियों की बैठक हुई थी, वह भी काफी हंगामीखेज रही।

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चुनाव की ओर बिहार

Posted on 18 September 2017 by admin

जदयू और भाजपा के रिश्तों में अब पहली वाली बात नहीं रह गई है, वैसे भी इस हालिया गठित सरकार में भाजपा जूनियर पार्टनर के बजाए बराबर की भागीदार है, महत्वपूर्ण फैसलों से पहले नीतीश के लिए भाजपा की राय लेना भी जरूरी हो गया है। नहीं तो पिछली सरकार में नीतीश सुशील मोदी को बस फैसलों के बाबत जानकारी दे दिया करते थे और सुशील मोदी भी नीतीश के ’यस मैन’ की भूमिका में थे। पर इस बार दांव पलट गया है, अमित शाह का सुशील मोदी पर पहले जैसा भरोसा नहीं रह गया है, सूत्र बताते हैं कि शाह कहीं न कहीं यह मानने लगे हैं कि सुशील मोदी पार्टी हित के बजाए अपने निजी हित को ज्यादा तरजीह देते हैं। चुनांचे बिहार में अब भाजपा के पक्ष से तमाम अहम फैसले दिल्ली से लिए जा रहे हैं। अभी एक रोज पहले ही अमित शाह ने बिहार की कोर कमेटी की अहम बैठक दिल्ली में बुलाई और उसमें पार्टी नेताओं को साफ तौर पर निर्देश मिले हैं कि नीतीश के समक्ष उन्हें किसी हाल में झुकना नहीं है। शाह बिहार में समय से पूर्व चुनाव करवाने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अगले साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने हैं, भाजपा चाहती है कि लोकसभा के चुनाव भी राज्यों के चुनाव के साथ करवा लिए जाए, इसी कड़ी में बिहार को भी जोड़ा जा सकता है, अगर यह मुमकिन नहीं हुआ तो इन राज्यों के चुनावों को ही 2019 तक टाला जा सकता है ताकि राज्यों के विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनावों के साथ कराए जा सके।

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