कौन कहता है राजीव नहीं हैं, वे हैं और यहीं कहीं हैं

May 15 2011


कौन कहता है राजीव नहीं हैं, वे हैं और यहीं कहीं हैं-अशोक दुबे, स्वर्गीय राजीव गांधी के अनन्य
त्रिदीब रमण नई दिल्ली 20 मई 2011
राजीव की कैबिनेट में प्रणब मुखर्जी को कभी क्यों नहीं मिली जगह, एक बड़ा खुलासा
भले ही अशोक दुबे स्वर्गीय राजीव गांधी के कोई नाते-रिश्ेतदार नहीं, पर राजीव ने उन्हें अपने किसी परिजन से कभी कम नहीं समझा। जब तक राजीव रहे, दुबे साए की तरह उनके साथ रहे, आज राजीव नहीं हैं पर दुबे जी के लिए वे आज भी यहीं हैं, उनकी हर सांस में जिंदा हैं। ‘पंजाब केसरी’ से एक खास बातचीत में वे अपने भाई साहब (राजीव) को याद करते हुए भावनाओं के अतिरेक में बह जाते हैं, तो कभी यकबयक पूरे तरन्नुम में गाने लगते हैं जो खास तौर पर उन्होंने राजीव की यादों को समर्पित किया है-
‘…आज तुम हो, तुम्हारी खुशबू है
तेरी आवाज हर पल मेरे कानों में गुनगुनाती है
ऐ खुदा! यही मेरी जन्नत है, जिस्म से तुम नहीं करीब मेरे
फिर भी हर सांस में मेरे साथ हुआ करते हो…’
दुबे की पत्नी नहीं रहीं, उनकी दोनों बेटियां

कलकत्ता (अब कोलकाता) से कोई सौ-सवा सौ किलोमीटर दूर, सुबह कोई साढ़े नौ बजे का वक्त रहा होगा, तारीख अब भी मुझे ठीक से याद है 31 अक्तूबर 1984,मैं राजीव जी के ठीक पीछे खड़ा था,साथ में रवि (राजीव का अंगरक्षक) भी था कि अचानक मंच के नीचे भगदड़ शुरू हो गई, धक्का-मुक्की, शोर-शराबा,जनसभा का मूड बिगड़ जाने का अंदेशा पैदा होने लगा था। राजीव उस वक्त तक राजनीति में नए थे, पर अनाड़ी नहीं थे, वे समझ गए थे कि यह प्रणब मुखर्जी और प्रियरंजन दास मुंशी (तब मुंशी को गनी खां चौधरी का भी समर्थन प्राप्त था) के समर्थकों के बीच का लफड़ा है,आम तौर पर वे इतनी जल्दी आपा नहीं खोते थे, पर उस दिन गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया और वे झटपट मंच की सीढ़ियां उतर कर नीचे आए और उन्हाेंने गुत्थम-गुत्था हो रहे कांग्रेसी कार्र्यकत्ताओं को लगभग धकेल ही दिया, चीख कर बोले-‘क्या कर रहे हो तुम लोग? क्या यही कांग्रेस की परंपरा है?’ वहां मौजूद एक फोटोग्राफर ने झट उस क्षण की तस्वीर उतार ली, मैंने लपक कर उसका कैमरा छीन लिया और उसमें से रील बाहर निकाल ली, मुझे पता था यह तस्वीर वह बयां करेगी, जो सच से आगे की बात है। राजीव जब वापिस स्टेज पर आए तब भी उनके चेहरे पर तनाव था, पर वे सहज होने का यत्न कर रहे थे। उन्होंने माइक लिया और बोलना शुरू किया, अभी बमुश्किल ढाई-तीन मिनट ही बोले होंगे कि रवि ने आगे बढ़कर उनकी कानों में कुछ फुसफुसाया, रवि ने मेरी कमर पर हाथ लगाया बोला-‘अभी निकल लो।’ तब तक राजीव भी बोलना बंद कर चुके थे, वे मंच से नीचे उतर रहे थे, पीछे-पीछे मैं भी बदहवास सा उतर रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार हुआ क्या? तब तक रवि ने मुझे बेहद संक्षिप्त तरीके से बताया कि ‘मैडम को गोली लग गई है।’ मैं अवाक रह गया। मैंने देखा राजीव जी मंच से उतर कर पैदल ही तेज कदमों से एक खाली मैदान की ओर चले जा रहे हैं, उनके हाथ में एक ट्रांजिस्टर था, मैं भागकर उनके पीछे गया वे बीबीसी पर न्यूज सुन रहे थे। तब तक एक बड़ा सा हेलिकॉप्टर भी वहां आ पहुंचा। जिसमें राजीव जी, प्रणब मुखर्जी, के.वी.पन्निकर, मैं, रवि तथा डिफेंस के कुछ लोग बैठे, हेलिकॉप्टर ने कलकत्ता एयरपोर्ट के लिए उड़ान भरी। मैंने राजीव जी की ओर ध्यान से देखा जैसे वह अपने मनोभावों को संयत करने का प्रयास कर रहे थे, उन्होंने अपने हैंड बैग से एक खूबसूरत-सा नेपकिन का डिब्बा निकाला, गीला, खुशबूदार नेपकिन, मुझे, प्रणब सबको उन्होंने एक-एक नेपकिन दिए, फिर अपना चेहरा पोंछा। फिर अपने उसी बैग से उन्होंने एक सेब निकाला, उसे करीने से काटा और एक-एक टुकड़ा सेब का हम सबको दिया। थोड़ी देर बाद हम कलकत्ता में उतरे तो वहां पहले से ही एक बड़ा यात्री जहाज खड़ा था। जहाज में बलराम जाखड़, बंगाल के तत्कालीन गवर्नर और हम सब सवार हो गए। राजीव जी अक्सर उड़ानों में कॉकपिट में ही बैठ जाया करते थे, पर उस रोज वे कॉकपिट का दरवाजा पकड़ कर खड़े थे, एक अजीब सी स्थितप्रज्ञता लिए। तभी पीछे से एक तेज रौबदार आवाज गूंजी-‘राजीव, लिसेन…’ राजीव जी ने घूमकर आवाज की दिशा की ओर देखा, उस वक्त उनकी आंखें सुर्ख लाल थीं, चेहरा बेतरह खिंचा हुआ। मैंने गर्दन पीछे घुमाई तो पाया कि प्रणब थे, पाइप पी रहे थे। मैंने पन्निकर से कहा-‘आज तो बंगाली काम से गया।’ इतिहास गवाह है कि राजीव जी की कैबिनेट में कभी प्रणब मुखर्जी को जगह नहीं मिली। दिल्ली में जहाज जैसे ही टेक्किनल एरिया में पहुंचा मैंने देखा सबसे आगे अमिताभ बच्चन खड़े हैं अरुण सिंह के साथ, राजीव के उतरते ही अमिताभ ने उन्हें गले लगा लिया, दोनों कुछ देर तक वैसे ही रहे, उनकी आंखें गमगीन थीं, हम भी अपना रोना नहीं रोक पा रहे थे। वे अमिताभ के साथ गाड़ी में बैठकर सीधे एम्स की ओर चले गए। हम अरुण सिंह की गाड़ी में थे, जैसे ही हम आइएनए के पास पहुंचे हर तरह धुएं का गुबार उठता दिखा, टायर जल रहे थे, माहौल में अजीब सी बेचैनी थी। एम्स से वापिस लौटते हुए ड्राइवर ने रेडियो लगा दिया था, खबर आ रही थी कि राजीव गांधी ने अभी-अभी प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। मेरी आंखें गीली थी, मैं खिड़की से बाहर की ओर देखने लग गया। मुझे आज भी यह बात समझ में नहीं आ रही कि शीला दीक्षित ने राजीव जी की मौत के 20 साल बाद आज ऐसा बयान क्यों दिया कि जब इंदिरा जी को गोली लगी तो वह राजीव जी के साथ एक ही विमान पर सवार होकर दिल्ली के लिए उड़ी थीं और रास्ते में उन्हें पायलट ने सूचना दी कि इंदिरा जी को गोली लग गई है और वह हमारे बीच नहीं रही हैं। जबकि हकीकत यह है कि शीला जी तो उस विमान में थी ही नहीं, तो वह ऐसा क्यों कह रही हैं? क्या मालूम सियासत की लत ज्यादा लग गई हो।

 
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